भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां होता / ग़ालिब
Kavita Kosh से
(घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता / ग़ालिब से पुनर्निर्देशित)
घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां<ref>बरबाद</ref> होता
बहर<ref>समुद्र</ref> गर बहर न होता तो बयाबां<ref>उज़ाड़,रेगिस्तान</ref> होता
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर दिल है
कि अगर तंग न होता, तो परेशां होता
बादे-यक उम्र-वराअ<ref>उम्र भर के संयम का बाद</ref> बार<ref>प्रवेश-आज्ञा</ref> तो देता बारे<ref>ज़रूर</ref>
काश, रिज़्वां<ref>स्वर्ग का दरबान</ref> ही दर-ए-यार का दरबां होता
शब्दार्थ
<references/>