भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर है तिरा तू शौक़ से आने के लिए आ / रम्ज़ आफ़ाक़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर है तिरा तू शौक़ से आने के लिए आ
लेकिन मैं ये चाहूँगा न जाने के लिए आ

ये रूख़ भी मोहब्बत का दिखाने के लिए आ
आ मुझ से नज़र फेर के जाने के लिए आ

मुद्दत से हूँ मैं तेरी मुलाक़ात का तालिब
आ मुझ पे कोई ज़ुल्म ही ढाने के लिए आ

पैमानों से पीते हैं पियें रिंद-ए-ख़राबात
तू मुझ को निगाहों से पिलाने के लिए आ

अर्बाब-ए-ख़िरद को है बड़ा नाज़ ख़िरद पर
तू उन को भी दीवाना बनाने के लिए आ

क्या मैं तिरे इस लुत्फ़ के क़ाबिल भी नहीं हूँ
ऐ जान-ए-वफ़ा दिल ही दुखाने के लिए आ

बर्दाश्त इसे इश्क़ की ग़ैरत न करेगी
क्यूँ तुझ से कहूँ मैं कि ज़माने के लिए आ