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घाटी में धूप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

भोर की

पहली किरन से

पुलक –भरा

स्पर्श पाया ,

जैसे शिशु नींद में

रह-रहकर मुस्कराया ।

धूप उतरी

घाटियों में ,

ज्यों उतरता

सीढ़ियों से

पीठ पर लादे हुए

बस्ता किताबों का

एक छोटा

अबोध बच्चा ।

और जादू रौशनी का

धरा पर

उतर आया ।

बह उठी है

भीड़ सड़कों पर

पनाले –सी

छा गई गर्मीं

ढलानों पर

और वक़्त

थके चूर-चूर बच्चे –सा

कुनमुनाया । -0-(28-9-1989; वीणा जून 97)