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घाव-ख़ुशी / जया झा
Kavita Kosh से
घाव किसी के भरते नहीं सहलाने से कभी
उन्हें तो ढँक कर छोड़ देना ही अच्छा है।
जाता नहीं दर्द दास्ताँ सुनाने से कभी
उससे तो बस मुँह मोड़ लेना ही अच्छा है।
मरहम बहुत ढूंढे सदा लोगों ने मग़र
सब अच्छा करने की कोशिश के मर्ज़ का
इलाज नहीं कोई, कोई हल भी नहीं है
झगड़ा ग़र हो कही फ़र्ज़ फ़र्ज़ का।
आते हैं लोग पूछने ख़ुश कैसे रहा जाए
कैसे बताऊँ वो ज़हीनी चीज़ नहीं है
मूंद लो आँखें ग़र कोई चीज़ तड़पाए
ख़ुशी वही है जहाँ कि रीत यही है।