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घाव करके नमक लगाते हैं / सूरज राय 'सूरज'
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घाव करके नमक लगाते हैं।
आज हम ख़ुद को आज़माते हैं॥
हम तो जोकर हैं मत कहो इन्सां
काम छोटा-सा है हंसाते हैं॥
रोज़ मरते हैं वह तिज़ोरी में
जो क़फ़न के लिए बचाते हैं॥
एक बच्चे का प्रश्न गुल्लक से
लोग सपने कहाँ बचाते हैं॥
आज हारेगी यक़ीनन किस्मत
दांव पर भूख़ हम लगाते हैं॥
सिर्फ़ इक इश्तहार हैं रिश्ते
ख़ंजरों को दवा बताते हैं॥
प्यार में और कुछ नहीं होता
बस अकेले में बड़बड़ाते हैं॥
नाज़ दीपक को उन अंधेरों पे
हार कर जो उसे जिताते हैं॥
सुब्ह से शाम तक कई "सूरज"
वक़्त की नौकरी बजाते हैं॥