घासलेट / कुमार कृष्ण

मेरे दोस्त मिट्टी के तेल
मैं जानता हूं-
तुमने ही किया था पहली बार
गरीब लालटेन का नामकरण
तुमने ही बदला था तम्बुओं, झोंपडियों, कच्चे घरों में
अनाज का स्वाद
नहीं हो पाती कभी भी तवे और रोटी की दोस्ती
अगर तुम न होते
पहचान लिया था तुम्हारी ताकत को सबसे पहले
माचिस की नाज़ुक तीली ने
तुम पानी से आग बने हमारे लिए
सुलगते रहे सुबह-शाम
दिन-रात हर मौसम में
पढ़ाते रहे भूख की बारहखड़ी


तुमने बदले कई-कई रूप-
कभी उड़े आकाश में पंख लगाकर
कभी जले छोटे से दीपक में
कांचघर में बदल डाला तुमने लालटेन
चावल को भात बनाने में
खत्म कर दिया तुमने अपने आप को
कोई नहीं समझ पाया तुम्हारा बलिदान
तुम नहीं थे कोई महादेव
नहीं थे स्वर्ग के देवता
नहीं थे कोई राजाश्रय बाबा
किसी ने नहीं बनवाया तुम्हारा बिरला मंदिर
तुम थे कथरी के करुणा निधि ग़रीब नवाज़
रात-रात भर जागकर समझाई तुमने
मुझे वर्णमाला
तुम चाँद को सूरज में बदलने के लिए
लड़ते रहे लगातार अंधेरे के खिलाफ़
फिर भी आता रहा काली दाड़ी में अँधेरा बार-बार
चलो चलते हैं दीयासलाई के घर
उससे मांगते हैं आग के पाँव
मिलकर लड़ते हैं तीनों
शायद हो जाए चाँद का मुंह सीधा
उठो मेरे दोस्त घासलेट उठो-
पृथ्वीराज हमारी नींद में पहुँच गया है।

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