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घास / सुमन केशरी
Kavita Kosh से
वो घास जो पैरों तले
मखमल -सी बिछ जाती है
बरछी-सी पत्तियों को
नम्रता में भिगो
लिटा देती है
धरती की चादर पर
मौका मिलने पर
तन खड़ी होती है
ऊपर और ऊपर उठने को
आकाश छूने को
व्याकुल
बरछी सी तन जाती है