घुँघरी तब ही मनाएगी / कविता भट्ट
सिसकते-प्रश्नों के उत्तर,
ये पहाड़न जब पा जाएगी
झुकी कमर में प्राण-संचार होगा
झुर्रियों में धँसी हँसी-आँख नचाएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी
ऊँची-नीची पहाड़ी पगडण्डी पर
कोई गर्भवती प्राण नहीं गवाँएगी
गाँव-गाँव कस्बे-कस्बे प्रसूति-डॉक्टर
स्वास्थ्य-सुविधा जब भी पा जाएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी
जब अल्ट्रा साउंड, साउंड करेगा
एक्सरे स्वास्थ्य किरण फहराएगी
स्वस्थ वार्ड अस्पताल पदचाप करेगा
खुश होकर ग्लूकोज़ की बोतल लहराएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी
ठेकों से निकले शराबी पति को
जब अपना निष्प्राण तन न थमाएगी
चेहरे पर झुर्री उगाते बोझिल दिनों और
घरेलू हिंसक रातों से जब मुक्ति पा जाएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी
देश को बिजली-पानी देता प्रदेश
जब स्वयं बिजली-पेयजल पा जाएगा
उसकी बिटिया उसके जैसे बोझ न ढोकर
पढ़-लिखकर इतिहास रच नाम कमाएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी
शिक्षित बेरोज़गार बेटे की जवानी
सुदूर कहीं पलायन की भेंट न चढ़ेगी
खस्ताहाल रोड-एक्सीडेंट में अपना खोकर
जब यह पहाड़न रो-रो पत्थर न हो जाएगी
लोकतन्त्र का उत्सव घुँघरी तब ही मनाएगी