भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घुट-घुट मरत बा आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घुट-घुट मरत बा आदमी
गलती करत बा आदमी

हैवानियत में जी रहल
कहवाँ डरत बा आदमी

कबहीं कली, फिर फूल बन
सूखत-झरत बा आदमी

तिल-तिल दिया के टेम अस
बूतत-बरत बा आदमी

आबाद आपन खेत रख
अनकर चरत बा आदमी

लेलस कबो करजा, उहे
रोजो भरत बा आदमी

सबके खुशी देखत दुखी
होके जरत बा आदमी