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घुळ्गांठ / कमल रंगा
Kavita Kosh से
घुळ्गांठ
नीं खुली
थारै झाझै जतनां
उळ्झ्योड़ी
प्रीत री घुळ्गांठ
जाणै
जड़-चेतन री ग्रंथी
रची
स्रिस्टी रै सरुपोत में
आपां दोवूं मिळ’र ई