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घृणा आ प्रेम / दीप नारायण

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प्रेम चाही
घृणा चाही
जे पनुगैत छैक स्वतः

कोनो गन्हाएल प्रयोगशालामे
कृत्रिम विधिसँ तैयार भेल
घृणा नहि चाही हमरा
जे परोसल जाइत अछि
स्वादिष्ठ व्यंजन जँका
ताज कि अशोका कि मेरेडियनक
डिनर टेबुल पर
आ कि इस्कुलिया नेनाक लांच बॉक्समे
आ कि अधिकारसँ बंचित
मधेसीक थरीयामे

जेना जनमैछ
हरियर दुपतिया गहूँमक बीच
अनगिनित नान्हि-नान्हिटा
सेनुरिया बथुआ
तहिना चाही प्रेम
कि तहिना चाही घृणा
जेना गन्हकी फतिंगा
सेबने रहैत अछि गन्ह।