जानवरों को नींद नहीं आती रात के अन्धकार में
पत्थर की दीवार की तरह खड़े रहते हैं वे दुनिया के ऊपर
चिकने सींगों के भूसे के बीच
आवाज़ करता है गाय का सिर
गालों की युगों पुरानी हड्डी को खिसकाकर
सिकोड़ दिया है पथरीले माथे ने
और अब तुतलाती आँखें
घूम नहीं पा रही हैं जुलाई के महीने में ।
घोड़े का मुँह समझदार है और सुन्दर
उसे सुनाई देती हैं पत्तियों और पत्थरों की बातें,
सावधान वह समझता है पशुओं की चीख़ें,
पूरे जंगल में कोयल की आवाज़ ।
सबकुछ जानता है वह, पर किसे सुनाए
चमत्कार जो देखे हैं उसने ।
गहरी है रात । साँवले क्षितिज पर
प्रकट हो रहे हैं तारों के हार ।
और घोड़ा खड़ा है
योद्धा की तरह पहरा दे रहा है
उसके हलके बालों से खेल रही है हवा
और आँखें जल रही हैं जैसे दो-दो विशाल दुनिया
सम्राटों के नीले वस्त्र की तरह
चमक रही है उसकी गर्वीली ग्रीवा ।
सम्भव होता यदि मनुष्य के लिए देख पाना
घोड़े का जादुई चेहरा ।
निकाल फेंकता अपनी कमज़ोर जीभ
और भेंट कर देता उस घोड़े को,
जीभ पाने का सच्चा पात्र है जादुई घोड़ा
हमें सुनाई देते शब्द
सेवों की तरह बड़े-बड़े
दूध या शह्द की तरह घने ।
ऐसे शब्द, जो चुभते हैं लपटों की तरह,
झोपड़ी में रोशनी की तरह
दिखाते हैं झोपड़ी की ग़रीबी और कृपणता ।
ऐसे शब्द, जो कभी नहीं मरते
जिनके गाते आ रहे हैं हम गीत आज तक ।
तो, ख़ाली हो गया है अस्तबल
बिखर गए हैं पेड़ भी
कंजूस सुबह ने कपड़े पहनाए हैं पहाड़ों को,
काम करने के लिए खोल दिए हैं खेत ।
धीरे-धीरे घोड़ा खींच रहा है बोझ
वफ़ादार आँखॊं से देख रहा है
रुके हुए रहस्य भरे संसार की ओर !
1926
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
Лицо коня
Животные не спят. Они во тьме ночной
Стоят над миром каменной стеной.
Рогами гладкими шумит в соломе
Покатая коровы голова.
Раздвинув скулы вековые,
Ее притиснул каменистый лоб,
И вот косноязычные глаза
С трудом вращаются по кругу.
Лицо коня прекрасней и умней.
Он слышит говор листьев и камней.
Внимательный! Он знает крик звериный
И в ветхой роще рокот соловьиный.
И зная всё, кому расскажет он
Свои чудесные виденья?
Ночь глубока. На темный небосклон
Восходят звезд соединенья.
И конь стоит, как рыцарь на часах,
Играет ветер в легких волосах,
Глаза горят, как два огромных мира,
И грива стелется, как царская порфира.
И если б человек увидел
Лицо волшебное коня,
Он вырвал бы язык бессильный свой
И отдал бы коню. Поистине достоин
Иметь язык волшебный конь!
Мы услыхали бы слова.
Слова большие, словно яблоки. Густые,
Как мед или крутое молоко.
Слова, которые вонзаются, как пламя,
И, в душу залетев, как в хижину огонь,
Убогое убранство освещают.
Слова, которые не умирают
И о которых песни мы поем.
Но вот конюшня опустела,
Деревья тоже разошлись,
Скупое утро горы спеленало,
Поля открыло для работ.
И лошадь в клетке из оглобель,
Повозку крытую влача,
Глядит покорными глазами
В таинственный и неподвижный мир
1926 г.