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घ्वस्त करो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
सब जर्जर-जर्जर ध्वस्त करो !
चिर जीर्ण पुरातन ध्वस्त करो !
कण-कण निर्बल क्षीण असुन्दर,
घुन-ग्रस्त, फटा, मैला, झुक कर,
मिटती संसृति में नूतन बल
प्राणों का जीवित वेग भरो !
जीवन की प्राचीन विषमता
रूढ़ि सकल, बंधन, दुर्बलता,
दुःख भरे मानव के व्याकुल
अंतर की शंका, ताप हरो !