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चंदन वन / प्रदीप प्रभात
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चंदन वन खिसकलै
झारखण्ड विहार सेॅ अलग भेलै
कोय नै चाहै छेलै
सिरिफ नेता छोड़ी केॅ।
ओकरा जरूरी छेलै
अलग राज्य के सत्ता सुख
विकास सेॅ कहिया मतलब रहलोॅ छै
ऐकरा सिक्षी केॅ।
झारखण्ड विकास आरो सुख-सुविधा के नामोॅ पर
अलग तॅे होलै मतुर कि जनता रोॅ सुख रही गेलै
धरलोॅ ताखा पर।
नौकरशाह आरो नेता रोॅ लूट
वदस्तुर जारी छै।
कहिया खतम होतै ई?
यहीं असरा मेॅ अटकलोॅ छै
कवि प्रभात के प्राण।