चऊखट / सरोज सिंह
बकईयाँ चलला से लेके
जवानी में डेग धइला तक ले
केंवाडी के ओहपार
चहुँपला से पहिले ही
पीछे से बरजत आवाज आवे
"हाँ.. हाँ... चउखट संभार के "
जवन चोट तब ठेहुन में लागत रहे
जवानी में उहे चोट मन पर उभर आवे
ओह्ह !! उ चउखट...
अउर ओके पार करे के सइ गो हिदायत
फेर इहे चउखट के गैर करार क दिहल
अउर कवनो अनचीन्ह चउखट पs
रुढीगत तौर तरीका के खोइंछा बान्ह के
बिदा कइल अउर ई कहल कि
"इहे चउखट प डोली उतरल
अब अर्थी भी इहें से उठी"
चउखट के ओर-छोर के पहाड़ बना देवे
अब, माई जब हमार जवान होत
बेटी के बे परवाही देखे ले
तब बेचैन हो के कहे ले
"बबुनी, अब इ बिटहिन् ना रह गईल
इ आन के घरे जाई
तनी अब कुछ सऊर सिखावs
ना त कब्बो ठोकर खा जाई "
अऊर हम मुस्कियात
माई के हाथ धीरे से दबा के कहेनी...
"माई! अब घरन में चउखट ना होत
एहिसे त...
अब उ बड़े आराम से लांघ जालीसं एवरेस्ट भी "
अऊर ई सुनके माइ के चिंता,
संतोस में बदल जाला!