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चकबिदोर / अविरल-अविराम / नारायण झा
Kavita Kosh से
आइ भोरे-भोर
कि ने की गेल फुराय
जे लगलहुँ निंघारय
फड़ल-फुलाएल गाछ सभ केँ
जे फड़ल फलकेँ फड़यबा मे
ककर छै योगदान?
सुरूजक रौद केर?
कि धरतीक भितुरका पानि केर?
कि हवा केर?
खनिज-लवण केर?
थाह नहि लागल
आ नै लागल कनियो भनक।
मोन नै मानलक
तखन फड़ल-फल सभकेँ
लगलहुँ छूइ-छूइ देखय
जे किनसाइत अभरि जाय
रौदक धाह
पानिक सोह
नहि अभरल।
तखनहुँ नै मानलक मोन
लगलहुँ एकक क$
सूंघि-सूंघि देखय
कि किनसाइत लागि जाय सुगंधि
सिहकैत हवा केर
गमकैत खनिज-लवण केर
नै ....
किछु नही।
हमर सभटा किरदानी
देखि रहल छल
गाछ चुपेचुप
हमरा दिस ताकि-ताकि
ओ गाछ लागल
भभा-भभा हँसय
कि तखने हम
गेल रही ठकमुराय
आ लागि गेल छल चकबिदोर।