हम अकेले नहीं हैं 
हमारी यात्राओं के बीच यह चट्टान उपस्थित है   
इसके किनारे घिस चुके हैं 
त्वचा सख़्त है मगर रूखी नहीं 
रंध्रों में इसकी थकान समाई है 
जमा हैं कितने ही किस्से इस संदूकची में   
खोलती है इन सबको यह रात में 
जब चारों ओर सुनसान होता है 
तारे आसमान से झाँकते हैं 
टोह लेती है ठिठक कर हवा   
यहाँ न कोई खिड़की है 
न दरवाज़ा 
फिर भी घर की संभावना मौजूद है 
कान लगाकर सुनें 
तो पानी के बहने की आवाज़ आएगी
वहीँ किनारे पेड़ भी होंगे कुछ हरे कुछ पत्रविहीन   
यह चट्टान है जो कभी जीवाश्म नहीं बनती 
                               
रचनाकाल : 1998