चढ़ न पाया सीढ़ियों पर!
प्रात आया, भक्त आए,
पुष्प-जल की भेंट लाए,
देव-मंदिर पहुँच पाए,
औ’ उन्हें देखा किया मैं लोचनों में नीर भर-भर!
चढ़ न पाया सीढ़ियों पर!
साँझ आई, भक्त लौटे,
भक्ति से अनुरक्त लौटे,
जान पाए-चाह मेरी वे गए कितनी कुचलकर!
चढ़ न पाया सीढ़ियों पर!
सब गए जब, रात आई,
पंथ-रज मैंने उठाई,
देवता मेरे मिले मुझको उसी रज से निकलकर!
चढ़ न पाया सीढ़ियों पर!