भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चतुर सयानों में / सदानंद सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बदहाल चेहरों की
भीड़ ही भीड़ है
बेशुमार अंतहीन

चतुर्दिक पसरा है
भीड़ के शोर का
मर्मांतक कोलाहल

सुनाने को आकुल सभी
सुनने का किसी में
जरा भी नहीं धैर्य

गड्डमड्ड शब्दों का
बन रहा जो कोलॉज
चतुर-सयाने कुछ
लगा रहे अर्थ
अपने-अपने अनुकूल

शोर यह
निरंतर जारी है
चतुर-सयानों में
मारा-मारी है!