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चननियां बिछै छै / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
हमरा लेॅ नै धनी सूरज उगै छै
हमरा ले नै ई चननियाँ बिछै छै,
जाड़े ठिठुरी कौकड़ी के
रात बिताबौं,
सिसकी सिहरी रहौं
तोरा की बताबौं।
सपना में जानौं पैंजनियाँ बजै छै
हमरा लेॅ नै ई चननियाँ बिछै छै
सभ्भै पावै छै दिन के सपना
हमरा तेॅ मिलै नै कोय अपना,
आस फेरू जानौं नै कैन्हें सजै छै
हमरा ले नै ई चननिया बिछै छै
भोर होते फेनूं जे किरनी ऐत्ती
राती के सुख सब आबी गिनैती,
सजनी लेॅ मोॅन कहौं कत्ते गजै छै
हमरा ले नै ई चननिया बिछै छै।
नदिया कछारी पर बेंगोॅ न उछलै
सिकुड़ी रहै सभ्भेॅ कौओॅ न गगलै,
दूर कहीं कोय कहूँ नै भजै छै
हमरा ले नै ई चननिया बिछै छै।