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चमक जुगनू की बर्क-ए-अमां मालूम होती है / सीमाब अकबराबादी
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चमक जुगनू की बर्क-ए-अमां मालूम होती है
क़फ़स में रह के क़द्र-ए-आशियाँ मालूम होती है
कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है
हवा-ए-शौक़ की कुव्वत वहाँ ले आयी है मुझको
जहाँ मंजिल भी गर्द-ए-कारवाँ मालूम होती है
क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रखी है
कि हर बिजली क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती है
तरक्की पर है रोज़-अफ्जूँ खलिश दर्द-ए-मोहब्बत की
जहाँ महसूस होती थी, वहाँ मालूम होती है
न क्यूँ सीमाब मुझको कदर हो वीरानी-ए-दिल की
यह बुन्याद-ए-निशात-ए-दो-जहाँ मालूम होती है