चमन ने झेल कर तूफ़ाँ, फ़स्ल ए गुल सजाये हैं,
मिटा कर जाँ चढ़े सूली, वो मंज़र याद आये हैं।
हमारा देश दुनिया में, बना सबसे अनोखा ही,
सभी तहज़ीब ने खिलकर, गुले-खुशबू खिलाये हैं।
यहाँ इंसान की ख़ातिर, हमें इंसान है बनना,
गिरा करते ज़मीं पर क्यों, तड़प कर खून साये हैं।
हमारे मुल्क से दुनिया, रही है सीख जीना भी,
बुज़ुर्गों की नसीहत से, जवाँ नज़रें चुराये हैं।
छिपे ग़द्दार कुछ ऐसे, ज़मीं का कर रहे सौदा,
ज़रा से फ़ायदे ख़ातिर, ज़मीं को बेच खाये हैं।
लगा माथे वतन मिट्टी, इसी से आन है अपनी,
दिलों में फ़र्ज़ को पाले, जवाँ दुश्मन भगाये हैं।
सदा बर्ताव घर बाहर, रहे गर एक-सा ‘रचना’,
करें जो फ़र्क़ आदत में, उन्हें कैसे बताये हैं।