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चम्मचों से नहीं / केदारनाथ अग्रवाल
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चम्मचों से नहीं
आकंठ डूब कर पिया जाता है
दुख को दुख की नदी में
और तब जिया जाता है
आदमी की तरह आदमी के साथ
आदमी के लिए
(रचनाकाल : 15.07.1965)