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चम-चम करते रत्नों की झिलमिल ज्योति-सा / कालिदास
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रत्नच्छायाव्यतिकर इव प्रेक्ष्यमेतत्पुरस्ता:
द्वल्मीकाग्रात्प्रभवति धनु: खण्डमाखण्डलस्य।
येन श्यामं वपुरतितरां कान्तिमापत्स्यते ते
बर्हेणेव स्फुरितरूचिना गोपवेषस्य विष्णो:।।
चम-चम करते रत्नों की झिलमिल ज्योति-सा
जो सामने दीखता है, इन्द्र का वह धनुखंड
बाँबी की चोटी से निकल रहा है।
उससे तुम्हारा साँवला शरीर और भी
अधिक खिल उठेगा, जैसे झलकती हुई
मोरशिखा से गोपाल वेशधारी कृष्ण का
शरीर सज गया था।