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चरागाह / राकेश कुमार पटेल
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ये दुनिया एक चरागाह है
हरी-भरी घासों से सजी
लेकिन इसमें चरने का अधिकार
कुछ ख़ास लोगों के लिए तय है
तुम मेहनत से
निराई-गुड़ाई करो
खाद-पानी डालो
साहब आएँगे अपनी सवारी से
उतरेंगे बड़ी नफ़ासत से
और करेंगे निरीक्षण चरागाह का
निहारेंगे ललचाई निगाहों से देर तक
इस ओर से दूसरी छोर तक
हरी-भरी घास को ।
तुम्हारी पसीने से सनी पीठ को
थपथपाएँगे भी और देंगे शाबाशी
फिर चरेंगे धीरे-धीरे सपरिवार
इस कोने से दूसरे कोने तक को प्रेम से।
चरागाह चौपायों नहीं
साहब को चरने के लिए होते हैं।