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चरित्र अभिनेता / रमेश क्षितिज / राजकुमार श्रेष्ठ

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खिड़की से देख रहा हूँ
पश्चिम के सिरे से उतरता हुआ बूढ़ा सूरज
गोधूली में चहक-चहककर
गुफ़्तगू कर रहे हैं परिन्दे
और ज़िन्दगी खोशीदा दरख़्त-सी
खड़ी है इक तमास !

सन 80 के दशक की ऐसे ही एक साँझ
चला था मैं घर से
माँ ने जेब में रख दिए कुल तीस रुपए लेकर
थोड़ी दूर दोराहे तक पीछे-पीछे आकर
बहन तो कह रही थी –
दिवाली पे तो ज़रूर लौट आना भैया !

बहुत-सी बिन भैया के फीकी-फीकी-सी दिवाली मनाकर
ब्याहा करके चली गई बहन एक दिन
और एक ही अँगूठे की छाप से खो दिया माँ ने
वो पुश्तैनी घर, खेत
फिर भी मैं लौटा नहीं !
पर दिन भर भटकता रहा मुम्बई की गलियों में

रात भर रोता था मैं घर की याद में
और सवेरे ही जाकर करता था – जोकर की भूमिका
और करता था करोड़पति का किरदार दोपहर में
भूखा, बे-नींद और क्लान्त रातों को
गिनता था आसमाँ के तारे
दिशाहीन अपने ही जीवन को भूलकर
मैं करता था खतरनाक स्टण्ट
कूदता था चलती-चलती रेल में
इसी तरह क्रमशः ज़िन्दगी घुटने लगी
टूटने लगी
लैब के अन्धेरे कमरे में एडिटिंग में काटे गए
एक-एक सीन की तरह बेकार गए वह बहुमूल्य दिन
फिर अचानक इक सुबह
आईने के सामने खड़े होकर दाढ़ी बनाते-बनाते

मैं छील रहा हूँ ब्लेड से किस अजनबी चेहरे को ?
कब लहूलुहान हुआ गाल पता ही नहीं चला
उसी शाम ठूँसकर बाकी सपनों को मैले झोले में
मैं लौट आया जन्मघर – इस सुदूर गाँव में
कितना वक़्त लगता ही है इक अदना-सा ज़िन्दगी बीतने में

याद करता हूँ वह पुराने दिन
और आईने में देखता हूँ खुद के सफ़ेदी खिले हुए बाल
ख़ुद-ही-ख़ुद को सोचता हूँ चलचित्र का कोई किरदार-सा

पता नहीं - कब तक करना होगा
अभी और तन्हा बूढ़े का किरदार
सच कहता हूँ,
बदलते जाने वाले जीवन के मंज़रों में
इक चरित्र ही तो है हर इक आदमी

पर, अभी भी इन्तज़ार है मुझे जीवन बदलने वाला कोई
क्लाइमैक्स !

मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : राजकुमार श्रेष्ठ