उड़ चल; उड़ चल; मेरे पंछी, तेरा दूर बसेरा
          दिन उड़ता निज पर फैलाए
          बदल रहा जग बिना बताए
दिन के संग चलाचल, पीछे आता घोर अन्धेरा
          सांस न लेने की बेला है
          प्रलय-पर्व का यह मेला है
फिर, तेरा वह देश, जहाँ पर शेष न साँझ-सवेरा