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चलना और भटकना / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
चलने वाले के सामने
भटक जाने के खतरे बहुत ज्यादा होते हैं
दरअसल कोई चलने वाला भटके बिना रह नहीं सकता
सिवाय उनके जो मंजिल से मंजिल तक जाते हैं
हालांकि उनमें से भी कई भटक जाते हैं
खतरा उनके लिए भी है
जो अंदर से बाहर और बाहर से अंदर की यात्रा करते हैं
और समझते हैं कि मंजिल तक पहुंच चुके हैं
और अब विश्राम करने का समय हो चुका है
ईश्वर तक पहुंचने के लिए जो चलते हैं
वे भी भटककर न जाने कहां-कहां पहुंच जाते हैं
मार्क्सवाद तक पहुंचे हुए भी कई भटक गए
लेकिन जो भटकेगा,
कहीं न कहीं मुझसे टकराएगा.