चलना मुश्किल है / शिव मोहन सिंह
सूरज है नाराज आज कुछ
कहना मुश्किल है,
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है।
छत नीचे तंदूर जला तो
तड़पा सारा गाँव ,
घिघियाकर अनुदान मांगते
ए-सी कूलर छांव।
पुरवाई के लाग-लपेटे
रहना मुश्किल है ।
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है॥
पूज रहे पनघट के पाहन
समतल पोखर ताल ,
रेत नदी तट अनुबंधित हैं
होते रोज़ हलाल ।
चट्टानों में निर्झर उलझा
झरना मुश्किल है।
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है॥
धूल भरी आंधी उपवन का
कर जाती उपहास ,
गुमसुम-गुमसुम-सी लगती है
जीवट जीती घास ।
हरियाली के हिलकोरों का
हिलना मुश्किल है ।
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है॥
आग लगाने वालों में है
मौसम का भी नाम ,
हाथ हथेली हवा बहाते
मारुत है बदनाम ।
भरी पतीली दाल चढ़ी पर
गलना मुश्किल है ।
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है॥
बरगद पीपल नीम नुमाइश
करते पल्लव आम ,
काले भूरे मेघों का तन
तर्पण करता घाम।
साँसों की पूरी गिनती तक
जीना मुश्किल है ।
बरस रहा अंगार धरा पर
चलना मुश्किल है॥