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चलने का बल / हरींद्र हिमकर
Kavita Kosh से
पल-पल चल तू
चल अपने बल
मत बन निर्बल
तन-तन के चल
डर मत,मत डर
डट के डग भर
बढ़ रे चढ़ तू
ऊपर-ऊपर
मिल-जुल के चल
चल दल के दल
समझो चल के
छलिया का छल
हक तक बढ़ तू
हिम्मत कर तू
धीरज से लड़
धक-धक मत कर
खल के बल से
मत टल मत टल
लड़-चढ़ दल के
पाले सब हल
अब तो चल-चल
मत कर कल-कल
लड़-लड़ घर-घर
तू समता भर
हट मत नट मत
चल तू झट-पट
चल सुलझा दें
भारत के लट
खट रे खट तू
मत कर लट-पट
चल रे खोलें
सुख के सब पट
मत को समझो
जानो बहुमत
मत बेंचो मत
खुद को मत हत
चल रे दल रे
रावण के दल
चल-चल-चल रे
दल के दल चल