चला आ साँवरे तुझ बिन हमारा दिल नहीं लगता / रंजना वर्मा

चला आ साँवरे तुझ बिन कहीं भी दिल नहीं लगता
ये मैला कांच तेरे प्यार के काबिल नहीं लगता

किसी भी ओर जाऊँ रास्ते सारे अधूरे हैं
फ़क़त हैं रास्ते सब कोई भी मंजिल नहीं लगता

लहर बेचैन है कितनी डुबाने को मेरी कश्ती
मुझे दिखता है जल ही जल कहीं साहिल नहीं लगता

तेरी बस इक नज़र ही कत्ल माया मोह का करती
मगर घनश्याम तू मुझको कोई कातिल नहीं लगता

बनाता तू मिटाता भी ये दुनियाँ खेल है तेरा
किसी षड़यंत्र में पर तू मुझे शामिल नहीं लगता

विषद अति रूप तेरा है सुना मैंने पुराणों में
मगर यह विश्व तेरे गाल का इक तिल नहीं लगता

सहारे हैं तेरे जो चरण - रज हैं चाहते तेरी
करे तू चुटकियों में काम ये मुश्किल नहीं लगता

तेरी उल्फ़त के पारस को गंवा दे मोह के बदले
भरी दुनियाँ में कोई इस क़दर जाहिल नहीं लगता

न कर तश्ना हमे इतना कि प्यासे होंठ फट जायें
मुकम्मल तू रहे हो तिश्नगी कामिल नहीं लगता

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