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चलि अबियौ पटना सँ गाम / कालीकान्त झा ‘बूच’

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बी. ए. कैये लेलहुँ
एम. ए. ओ कऽए लिअ
नहि लिअ नौकरीक नाम
प्रियतम औऽऽऽ चलि आबि पटना सँ गाम

हमरा नहि चाही घरवैया नोकरिहारा
सिलिक नहि चाही नहि सोनक सिक्कड़ि गारा
करबे एक्के संझे बरू टुटली मरैयामे
दू नमरी धंधा हराम...

अहाँ घास काटब, हम चूल्हि केॅ पजाड़ि लेब,
अहाँ हऽर लादब हम घऽर केॅ सम्हारि लेब,
हऽम आड़ि ठाढ़ि सजल रोहिणी नक्षत्र जकाॅ
अहाँ हमर खेतक बलराम ....

रहतै ने रौदी ई आर्द्रा बरसि जेतै
पनि एतै परती ओ निश्चय कदबा हेतै
अहाँ धान रोपब ठेहूनिया दऽ दोहरि मे
जलखै मे गाड़ब हम आम...

थाकल झमारल घुरि आयब मुँन्हारि साॅझ
पाटी ओछायब हम हँसिते दुआरि माँझ
लक्ष्मी बनि तड़वा हम रगरब हे नारायण
घऽर हम बैकुण्ठी धाम ।

धन्य-धन्य मेहनतिक गंगा जे बहबै छथि,
अपने पसीना सँ धरती केॅ नहबे छथि,
खटि रहला भूखल पेयासे देहाते मे
हुनका दियबिअनु विराम...

श्रमक कोन मानि? जतऽ बुद्धिक विलास छै,
पेरा दलाल गाल श्रमक पेट घास छै,
दिल्ली कलकत्ता आ बम्बई केर बात की ?
छोटो शहर बदनाम...

घूसखोर मच्छड़ उड़ीस जकाॅ जीवै छै
शोणित तऽ ओ अवशिष्ट पीवै छै
हड्डी सुखायल अछि तैयो ओ अधिकारी
खगले केर तीड़ै छै चाम...