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चली गई माल दुलारी तजी न थारी / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    चली गई माल दुलारी तजी न थारी
    सोयो पाव पसारी तजी न थारी

(१) जिसकी जान थारा पास नही रे,
    सोना क दियो रे गमाई(हो रामा)
    भरम भंभू का उठण लाग्या
    नोटीश प नोटीश जारी...
    तजी न थारी...

(२) बृम्ह कचेरी म बृम्ह का वासा,
    गीत का मुजरा लेई(हो रामा)
    नव नाड़ी और बावन कोठड़ी
    अंत बिराणी होय...
    तजी न थारी...

(३) जब हो दिवानी ने दफ्तर खोला,
    नही शरीर नही श्वास(हो रामा)
    माता छटी ने डोर रचीयो है
    रती फरक नही आव...
    तजी न थारी...

(४) हिम्मत का हाल टुटी गया रे,
    रयि हमेशा रोई
    सतगुरु राखा अभी ले जाजो
    नही तो चैरासी का माही...
    तजी न थारी...

(५) कहत कबीर सुणो भाई साधो,
    यो पद है निरबाणी(हो रामा)
    यही रे पंथ की करो खोजना
    रही जासे नाम निसाणी...
    तजी न थारी...