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चलोबंधु / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
चलो बंधु
हम मंत्र रचें
कुछ भाईचारे के
सभी विषैली
जन गतियों को
गहन समुंदर में फेंके
मानवता के
मधुर गान में
लें मीठी-मीठी टेकें
चलो बंधु
हम बंद करें
सुर छ्द्म प्रचारों के
सुख-दुख में
मेरे साथ रहो
हम रहें तुम्हारे साथी
और पीढ़ियों
को दे जायें
कुछ नई नवेली थाती
चलो बंधु
हम बंद करें
चर्चे बँटवारे के
दिन बड़े प्यार से
जीवन के
बीतेगे हँसते-हँसते
हाथ पकड़कर
पार करेंगे
नदी, पहाड़ों के रस्ते
चलो बंधु
हम सूर्य रचें
फिर कुछ उजियारे के