चलो बचा लें / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
चलो बचा लें
स्वच्छ हवा थोड़ी-सी
थोड़ा-सा साफ़ पानी
और थोड़ी-सी धूप
कल के लिए
बचा लें हम
थोड़ी हँसी
थोड़ी मुस्कान
थोड़ी महक
थोड़ी चहक
थोड़े सपने
और थोड़ी-सी उम्मीद
चलो बचा लें हम
थोड़ी आस्था, थोड़ा विश्वास
कुछ आक्रोश, कुछ सन्तोष
आओ बचा लें
थोड़े फूल
थोड़ी तितलियाँ
कुछ कबूतर कुछ दरख़्त
चलो बचा लें
पायल की रुनझुन
चूड़ियों की खनक
बिंदिया की चमक
चलो बचा लें
ढोल की ढम-ढम
आल्हा कजरी के स्वर
दादी-नानी के किस्से
तीज-त्योहार
जेवनार
संस्कार
और थोड़े मंगलाचार
चलो बचा लें हम
थोड़े से कबीर
थोड़े महावीर
कुछ अराफ़ात
कुछ मण्डेला
गांधी का चरखा
और उनके तीन बन्दर
बचा लें हम चलो
हीर को देवदास को
मीरा को रैदास को
इस क्रूर समय में
आओ बचा लें
थोड़ी धरती, थोड़ा आसमान
थोड़ा सच थोड़ा ईमान
थोड़ी-सी आदमीयत
कुछ कविताएँ
और कुछ शुभकामनाएँ
बहुत कुछ शेष है अभी इस दुनिया में
बचाने के लिए
अपने बच्चों की ख़ातिर