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चलो माज़ी के अंधियारों में थोड़ी रौशनी कर लें / प्रेमचंद सहजवाला
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चलो माज़ी<ref>अतीत</ref> के अंधियारों में थोड़ी रौशनी कर लें
चलो यादों के दीपों से फरोजां<ref>प्रज्वलित</ref> जिंदगी कर लें
मेरे महबूब तेरी दीद कब होगी न जाने अब
तुम्हारी इंतज़ारी में ज़रा हम शायरी कर लें
तुम्हारे हुस्न को माबूद<ref>पूज्य</ref> कर के बन गए काफिर
तुम्हारे आस्तां<ref>चौखट</ref> पर रख के सर अब बंदगी कर लें
समुन्दर अपनी जा पर करते रहियो देवताई बस
तेरे क़दमों को अर्पित शहृ जब तक हर नदी कर लें
नदी पर जंग क्यों है किसलिए है आब<ref>पानी</ref> पर फितना<ref>झगड़ा</ref>
मुहब्बत की नदी में मिल के आओ खुदकशी कर लें