भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँदनी चाँद के पास आ जाती है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँदनी चाँद के पास आ जाती है
वो अँधेरों से दामन बचा जाती है

है चली जब हवा खुशबुओं से भरी
आ कली हर चमन की खिला जाती है

देखते ही तुझे एक प्यारी हँसी
लब पर मेरे तबस्सुम सजा जाती है

वस्ल की चाह दम तोड़ने है लगी
याद तेरी मुझे आ जिला जाती है

बेबसी हिज्र की अब सताने लगी
आँख दोनों मेरी डबडबा जाती है