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चाँद–सा माथा / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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तुम्हारा चाँद-सा माथा
जो दो पल छू लिया मैंने ।
कहें क्या बात जनमों की
पूरा युग जी लिया मैंने ॥
करें अभिशाप का वंदन
मिलते वरदान फिर कैसे ।
जब पूजा से दुआ गायब
मिटे शैतान फिर कैसे ॥
बनारस जा नहीं पाया
संगम नहा नहीं न पाया ।
घर के द्वार पर ही आज
वह प्रियतम पा लिया मैंने ॥
पूजा उपवास ना जाना
नाम का दान कब पाया ।
न ओढ़ी रामनामी ही
न घंटा- घड़ियाल बजाया ॥
कभी तप करना न आया
मुझे जप करना कब भाया ।
जब चिड़िया भोर में चहकी
कुछ गुनगुना लिया मैंने ॥
नरक का द्वार मिल जाए
स्वर्ग का सार छिन जाए ।
मुझे दोनों बराबर हैं,
रात आए या दिन जाए ॥
सबकी हर पीर मैं हर लूँ
उजाले प्राण में भर लूँ ।
थे जब गीले नयन पोंछे
सभी कुछ पा लिया मैंने ।।