भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद-तारों के बिखरने का सबब जानता है / निश्तर ख़ानक़ाही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद-तारों के बिखरने का सबब जानता है
दिल है सद्-रोख़्ना* मेरा, कोई यह कब जानता है

इश्क़ में भई तो जलाल अपना बचा कर रखा
वो मेरी खंदालबी*, मेरा ग़ज़ब* जानता है

दूर बैठा है तो क्या सारी ख़बर है उसको
वो मेरी सुबह, मेरा दिन, मेरी शब जानता है

दर्स* की चंद किताबें तो पढ़ी हैं उसने
मेरा फ़रजंद* बुजुर्गों का अदब जानता है

मै कि हूँ शाख़ से टूटा हुआ सूखा पत्ता
शहर में कौन मेरा नामो-नसब जानता है

1- सद्-रोख़्ना--सौ सुराखों वाली छलनी

2- खंदालबी--खुश मिजाजी

3- ग़ज़ब--गुस्सा

4- दर्स--पाठ्यक्रम

5- फ़रजंद--पुत्र