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चाँद-तारों के बिखरने का सबब जानता है / निश्तर ख़ानक़ाही
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चाँद-तारों के बिखरने का सबब जानता है
दिल है सद्-रोख़्ना* मेरा, कोई यह कब जानता है
इश्क़ में भई तो जलाल अपना बचा कर रखा
वो मेरी खंदालबी*, मेरा ग़ज़ब* जानता है
दूर बैठा है तो क्या सारी ख़बर है उसको
वो मेरी सुबह, मेरा दिन, मेरी शब जानता है
दर्स* की चंद किताबें तो पढ़ी हैं उसने
मेरा फ़रजंद* बुजुर्गों का अदब जानता है
मै कि हूँ शाख़ से टूटा हुआ सूखा पत्ता
शहर में कौन मेरा नामो-नसब जानता है
1- सद्-रोख़्ना--सौ सुराखों वाली छलनी
2- खंदालबी--खुश मिजाजी
3- ग़ज़ब--गुस्सा
4- दर्स--पाठ्यक्रम
5- फ़रजंद--पुत्र