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चाँद उस देस में निकला कि नहीं / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
चाँद उस देस में निकला कि नहीं
जाने वो आज भी सोया कि नहीं
भीड़ में खोया हुआ बच्चा था
उसने खुद को अभी ढूँढा कि नहीं
मुझको तकमील समझने वाला
अपने मैयार में बदला कि नहीं
गुनगुनाते हुए लम्हों में उसे
ध्यान मेरा कभी आया कि नहीं
बंद कमरे में कभी मेरी तरह
शाम के वक़्त वो रोया कि नहीं