चाँद की चुनौती / रामगोपाल 'रुद्र'
कलेजा हो किसी के पास, मेरा प्यार पाले!
समुन्दर का हिया हो तो, किरन का हार पा ले!
बहुत नजरें मिलाने को यहाँ मिलते सनेही;
नजर का जर चुराने को यहाँ मिलते सनेही;
तितलियों की कमी क्या है, कहीं जो गुल खिला हो!
महज कुछ गुल खिलाने को यहाँ मिलते सनेही;
मगर वह कौन है, जो प्राण में अंगार पाले?
यहाँ तो लौ-लपट को ही सनेही मान देते हैं
कि दीये देह लेकर नेह का ईमान देते हैं!
नहीं वह प्रेम, जो फानूस के छल से चमकता है,
मगर, फिर भी, उस छल पर पतंगे जान देते हैं!
कहाँ वह लौ कि जो लौ-सा अजर संसार पाले?
किसी का लूट रस-सरबस, मदोन्मद, लड़खड़ाता
भ्रमर लम्पट कली के पास आता, गुनगुनाता;
निरी नादान क्या जाने, छली का मर्म क्या है?
कली लुटती, अली रस पी, नई पाँखें लगाता!
कहाँ वह दिल जहाँ में। जो दिये दिल को सँभाले?