भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद के टीले पर / मार्गस लैटिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद के टीले पर
और अखरोटों की फुनगियों पर...
गिरते हैं तारे...
और गुदते हैं संदेशे...
ठंड के सलवटों पे

देखो...
खुले हैं तुम्हारे हाथ
जीवन के गुजरते
लम्हों को रंगते...
और निर्धारित राहों के
मुड़े हुए कदम को !

जवानी को पहाड़...
रवानी को नदियाँ
और
हौसले को चीटियाँ...

जिसे भी हो चाहत
लेकर दुनिया चलने की
जरूरी है की अपना दिल
भी वो साथ में ले ले

अँग्रेज़ी से अनुवाद : गौतम वसिष्ठ