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चाँद के मुख पर / डी. एम. मिश्र

चाँद के मुख पर
रखा हो
जैसे अधखिला गुलाब
नन्हा - सा शिशु
देख रहा हो
पूर्व जन्म का ख़्वाब
सोता हो -मुस्काता हो
वो सुन्दरता
आधी रात
झील में जैसे
चाँद उतरता

खुलें नयन तो लगे
खुले मंदिर के
बंद कपाट
अधरों का विस्फार लगे
मानस का सुन्दरपाठ
मिट्टी की मूरत तो देखेा
बेला-हरसिंगार
एक रूप में कभी नहीं
मेवा कभी अनार