Last modified on 19 सितम्बर 2014, at 23:13

चाँद / संतोष कुमार चतुर्वेदी

बेटे की जिद पर एक दिन
हमने तय किया यह
कि चाँद को चुपके से कैद कर लेंगे
उसके लिए और एक दिन आँगन में
बाल्टी भरे पानी में
चाँद निहार रहा था जब अपना चेहरा
हमने कैद कर लिया आखिर उसे
अपने लाड़ले के लिए

अब आसमान में चाँद नहीं था
या यूँ कहिए
कि चाँद आसमान में नहीं था
नहीं था वह कहीं भी
किसी भी आँख में
किसी भी बात में

एक चाँद के बिना
कितना सूना हो जाता है पृथ्वी का आँगन
हमने सोचा ही नहीं था
कि एक चाँद के बिना
कितना बेरुखा हो जाता है आसमान का मन
कि एक चाँद के न होने पर
लड़खड़ा सकती है अपनी यह पृथिवी भी
सचमुच इतनी शिद्दत से हमने यह
सोचा तक नहीं था

आरे पारे नदिया किनारे वाले चाँद को
बुलाने वाले अंदाज में दिखा कर
माँ तब खिला देती थी
अपने बच्चों को
कुछ अधिक कौर
अब चाँद के बिना लोरी की मिठास
नहीं मिला पाती थीं माताएँ
बेटों को खिलाने वाले कौर में

चाँद से रात भर लुकाछिपी खेलने वाले बादल
अब हताश निराश हो कर
चाँद की याद में
बहाए जा रहे थे आँसू

चाँद को बेपनाह चाहने वाले तारे
गुमसुम दिखाई पड़े
अपने चाँद वाली खुशबू के लिए

एक चित्रकार जिसने तय किया था
आसमान में खिले चाँद को देखते हुए
अपना चित्र बनाने के बारे में
चाँद को नदारद देख मायूस था
अपने ब्रश पेंट्स और कैनवास समेत

शायर परेशान थे
अपनी शायरी से अचानक चाँद को गायब देख कर
बदरंग शायरी की आँखों में झलक रहा था साफ साफ
अपने चाँद का बेसब्री से इंतजार

और एक कली
जिसके मन में उमगती उम्मीदें थीं
अनखिली ही रह गई
चँदीली किरणों के स्पर्श के बिना

ईद के चाँद की बेसब्री में डूबे मन
दूज के चाँद को तलाशती आँखें
चौथ के चाँद को खोजती मुहब्बत
पूनम के चाँद के इंतजार में बैठी समुद्र की लहरें
अठखेलियों के लिए आकुल व्याकुल
सब जिद कर रहे थे
अपने अपने चाँद की

अब अँधेरी रात भी अपनी रौनक खातिर
ढूँढ़ रही थी चाँद को
परछाइयों वाली रात
मुमकिन ही नहीं थी चाँद के बिना
रात को घुटन हो रही थी
अपने निचाट अँधेरेपन से

तालाब पोखर के पानी का
जादुई अंदाज में
सुनहले चँदोवे में बदलना
थम गया था अब

डगने की लय
डूबने की ताल
चमकने की मौसिकी
सब पड़ गए थे बेसुरे

ठिठुरती हुई रात हो
या पसीने में भीगी रात
कभी बहुत देर से आकर
तो कभी बहुत पहले से जा कर
तो कभी बहुत पहले से जग कर
दुनिया की हरदम निगरानी करने वाला
चौकीदार चाँद
पता नहीं कहाँ चला गया
अपनी छड़ी समेत
परेशान लोग दुहराते
अक्सर इस लब्ज को बार बार

चौकड़िया भरने वाला चाँद
हमेशा खिला खिला रहने वाला चाँद
बच्चों का अपना प्यारा
घुघुआ मामा चाँद
न जाने किस गुफा में खो गया
छिप गया न जाने किस खोह में
या चला गया वह
किसी और ग्रह से मिलने जुलने
अखबारों की सुर्खियाँ बन गई यह खबर

वैज्ञानिकों ने व्यक्त की अपनी चिंताएँ
विशेषज्ञों ने दिए अपने अपने विश्लेषणों
ज्योतिषियों ने की अजीबोगरीब गणनाएँ
गली नुक्कड़ के लोगों ने जताई आशंकाएँ

इन रातों में हमने देखा
कैद में कसमसाते चाँद को
उसकी सारी आभा
उसकी सारी हँसी
गायब थी एक सिरे से
मरियल पड़ गए चाँद को देखकर
एक दिन बेटे ने भी
कुबुल किया अपना गुनाह
हमने भी महसूस किया
मासूम से बच्चों का
चाँद के लिए मचलना
इधर बंद था
अब बेटे ने चाँद की रिहाई की जिद की
और हमने खुला छोड़ दिया चाँद को

आसमान में चाँद फिर अपने घर था
दुनिया में अब फिर सबका अपना
नया पुराना स्वर था
निरभ्र आसमान की कोरी स्लेट पर
चाँद एक अमिट अक्षर था