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चाँ, मेरे प्यार ! / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
- ओ चांद !
- तुमको देखकर
- बरबस न जाने क्यों
- किसी मासूम मुखड़े की
- बड़ी ही याद आती है !
- फिर यह बात मन में बैठ जाती है
- कि शायद तुम वही हो
- चांद, मेरे प्यार !
- यह वही मुख है
- जिसे मैंने हज़ारों बार चूमा है
- कभी हलके,
- कभी मदहोश ‘आदम’ की तरह !
- यह वही मुख है
- हज़ारों बार मेरे सामने जो मुसकराया है,
- कभी बेहद लजाया है !
- हुआ क्या आज यदि
- मेरी पहुँच से दूर हो,
- मुख पर तुम्हारे अजनबी छाया
- चिढ़ाने का नवीन सरूर हो ;
- जैसे कि फिर तो पास आना ही नहीं !
- क्या कह रहे हो ?
- ज़ोर से बोलो —
- ‘कि पहचाना नहीं !’
- हुश !
- प्यार के नखरे
- न ये अच्छे तुम्हारे,
- अब पकड़ना ही पड़ेगा
- पहुँच किरणों की सहारे,
- देखता हूँ, और कितनी दूर भागोगे,
- मुझे मालूम है जी,
- तुम बिना इसके न मानोगे !
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