भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांदनी में / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
नयी चांदनी में नहालो, नहालो !
नयन बंद कर आज सोये सितारे,
भगे जा रहे कुछ किनारे-किनारे,
खुले बंध मन के हमारे-तुम्हारे,
- किरण-सेज पर प्रिय ! प्रणय-निशि मनालो !
झकोरे मिलन-गीत गाने लगे हैं,
मधुर-स्वर हृदय को हिलाने लगे हैं,
नये स्वप्न फिर आज छाने लगे हैं,
- हँसो और संकोच-परदा हटालो !
जवानी लहर कर जगी मुसकरायी,
सिमटती बिखरती चली पास आयी,
बड़े मान-मनुहार भी साथ लायी
- सुमुखि ! अब स्वयं को न बरबस सँभालो !
- सुमुखि ! अब स्वयं को न बरबस सँभालो !
भ्रमर को किसी ने गले से लगाया,
सरस-गंध मय अंक में भर सुलाया,
बड़े प्यार से चूम झूले झुलाया,
- लजीली ! मुझे भी न बन्दी बना लो !
- लजीली ! मुझे भी न बन्दी बना लो !