भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांदनी है / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{KKGlobal}}

चांदनी है और मेरी छाया मेरे पीछे चल रही है

आगे एक काली बिल्ली चली जा रही है

मेरा डर मेरे हृदय में समाता है

और मुँह से निकलती है सी... ई...

बिल्ली पहले दुबकती है

फिर उछाल मारती है

अपने-अपने झबरे को सू-सू कराने

निकली है गोरी छोरी

सफेद झबरा चांदनी के टुकड़े की तरह भागता है

उसे हवा लगती है बिल्ली की

और भूँकता है वह

भागती है बिल्ली

पर चांदनी को तो

भंभोड़ ही डालता है वह।