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चांसलर की चिन्ताएँ / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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1
 
जब प्रचार मंत्री जनता की तकलीफ़ की बात करता है
बेचैनी से वह अपना माथा थाम लेता है और चारों ओर शोर मच जाता है :
हमारे फ़्युहरर के
बाल पकते जा रहे हैं ।
 
2

जब चांसलर रेडियो पर चिंघाड़ता है
लोग कहते हैं : कितनी मेहनत कर रहे हैं !
पर चूंकि उन्हें दिनभर मेहनत ही करनी पड़ी थी
वे ख़ुद चिंघाड़ नहीं पाते हैं ।
 
3

सबको पता चल जाता है : आनेवाले युद्ध के चलते
चांसलर की नींद हराम है ।
काश ! अगर
चांसलर चैन की नींद सोता
तो कोई युद्ध ही न होता ?
 
4

पड़ोस के देश
हिकारत के साथ हमारे मुल्क की बात करते हैं
आर्थिक बदहाली व हिंसा की
वे ज़ोरदार ढंग से निन्दा करते हैं ।
कहा जाता है, विदेशी अख़बार पढ़ने के बाद चांसलर अक्सर रो पड़ते हैं ।
फिर प्रचार मंत्री जनता से मांग करता है
वह उसके आँसू पोंछ डाले ।

5

जब चांसलर ने अपने दोस्तों को भी हलाक़ कर दिया
क्योंकि उसकी जेब भरनेवाले ऐसा चाहते थे
तो उसका चेहरा संजीदा हो गया ।
लोग जब भूखे पेट होते हैं
उसके पेट में दर्द होने लगता है ।
 
6
 
यह तय है कि जब वह मुल्क को युद्ध में झोंक देगा
वह बच्चों की तरह रोने लगेगा ।
जब तुम्हारे बच्चे और मर्द मैदान में खेत रहेंगे
अफ़सोस के साथ वह गहरी सांस लेगा ।
जब तुमको घास खाकर जीना पड़ेगा
संजीदगी के साथ वह तुम्हें देखेगा ।
और तुम्हें पता चल जाएगा
तुम्हें एक अच्छा चांसलर मिला है ।

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य