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चाबियां / सुरेन्द्र डी सोनी

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दिलों के राज़
हमने पहली रात ही साझा कर लिए थे –

चाबियाँ बदल ली थीं
इस वादे के साथ
कि प्यार में विश्वास ही सबसे बड़ी चीज़ है
इसलिए इन चाबियों को
पूर्णिमा की रात
दोनों अलग-अलग चाँद की तरफ़ उछाल देंगे...

कुछ बरस तक
सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा
इस विश्वास पर
कि दूसरे ने वे चाबियाँ चाँद की तरफ़ ज़रूर उछाल दी हैं...

कुछ और बरस बीते –
बच्चों के साथ-साथ हमारे अहं भी बड़े होने लगे...

झगड़े बढ़े और बढ़ते ही गए...

अदालत में तमाशा हुआ
तलाक़-मुआवज़े माँगे गए...
बरसों पुराने राज़ खोले गए…

जज साहब ने कहा कि सबूत लाओ...
दोनों के वक़ीलों ने
चाबियाँ निकाल-निकालकर मेज़ पर रख दीं..!