भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाय-5 / नूपुर अशोक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी किसी
और कभी
किसी और के नाम पर
दूर होते गए हैं हम
छोटी-छोटी खुशियों से,
इस चाय की तरह
जिसमें रह गई हैं
चाय के नाम पर
अब बस चंद पत्तियाँ,
चलो न,
वापस लौटें उसी भरपूर वक़्त में
और भर लें एक बार फिर
इस पानी-पानी जीवन में
अदरक जैसी तेज़ी
इलायची जैसी खुशबू
चीनी जैसी मिठास
और दूध जैसा प्यार!